۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
शाकरी

हौज़ा/ माहे रमज़ान के आने के अवसर पर एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि इस्लामी सभ्यता को पुनर्जीवित करने के लिए, इमामों के जन्म और शहादत को व्यापक रूप से वर्णित करने की आवश्यकता हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन शेख़ गुलाम मोहम्मद शाकरी ने माहे रमज़ान के आने के अवसर पर एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि इस्लामी सभ्यता को पुनर्जीवित करने के लिए, इमामों के जन्म और शहादत को व्यापक रूप से वर्णित करने की आवश्यकता हैं। और समाज में इस चीज को राइज करके ही समाज को एक अच्छे मार्ग पर ला सकते हैं।
उन्होंने सूराह राद अयात(11) का हवाला देते हुए कहा
إِنَّ اللهَ لاَ یُغَیِّرُ مَا بِقَوْمٍ حَتَّى یُغَیِّرُواْ مَا بِأَنْفُسِهِمْ
इंसान को इंसान बनने के लिए अंदर से बदलाव की जरूरत हैं
अपने ज़मीर को जगाए जिसके लिए दो चीजें ज़रूरी है, विचार और इरादा। यदि इन दोनों तत्वों को मिला दिया जाए, तो परिवर्तन निश्चित है। बदलाव पहले आना चाहिए। सिर्फ मौखिक रूप से नहीं, जैसा कि हमने शहीद होजाजी जैसे शहीदों में देखा है।
उन्होंने कहा: सत्य के मार्ग के लिए मरने के विचार कर्बला के शहीदों को पुनरुत्थान के दिन तक पुनर्जीवित किया है। इस आंतरिक प्रयास को जिहाद अकबर कहा जाता है जबकि बाहरी प्रयास को जिहाद असगर कहा जाता है। क्योंकि आंतरिक परिवर्तन और जिहाद बाहरी सफलता का आधार है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन शेख़ गुलाम मोहम्मद शाकरी ने कहां इस वक्त समाज में हर किस्म की किताब कार्टून अफसाने जैसे मौजूद हैं मगर नहीं है सिर्फ इस्लामी किताबे और दिन को पहचानने वाली किताबें हमें स्कूलों और मदरसों के छात्रों को बेहतरीन किताबें और अन्य चीजें देने के साथ-साथ आधुनिक प्रशिक्षण पर ध्यान देने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा: रमजान का महीना इस्लामी सभ्यता और संस्कृति पर ध्यान देने का महीना है।

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